लेखनी प्रतियोगिता -24-Mar-2023
मैंने तुम्हें देखा
इससे पहले की तुम्हें देखता
समाज के परिप्रेक्ष्य से
तुम्हें मापता प्रचलित मापदंडों पर
तुम भा गयी।
कुछ ऐसे जैसे
बच्चों को जुगनू अच्छे लगते हैं
क्योंकि मापदंड तो भूगोल
की गणनाएं हैं और
सामाजिकता की अपनी सीमाएं हैं
तुम जो भी हो
मौलिक हो गुण अवगुण से
और शायद वो
जो मैं नहीं हूँ पूर्णतया
तभी तो तुम मुझे पूर्ण करती हो
और पूर्ण होना ही मानव
की चिर अभीप्सा है।
सम्भव है हम मिलें
अम्ल और क्षार की तरह
न तुम तुम रहो न मैं मैं रह पाऊं
पर यह भी सत्य है
अंतः स्तर की यह रासायनिकता
मात्र तुम्हारे मेरे मध्य ही सम्भव है।
।
।
।
Gunjan Kamal
25-Mar-2023 08:27 AM
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌👌
Reply
Swati chourasia
25-Mar-2023 07:42 AM
बहुत ही सुंदर रचना 👌👌
Reply
Abhinav ji
25-Mar-2023 07:35 AM
Very nice 👌
Reply